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Full text of "Eemaan Ki Kasauti (H)"

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मौलाना स्यद अबुलं-आला मौदूदी (6 


विसमिल्लाहिरहमानिरहीम 


अल्लाह के नाम से जो निहायत मेहरवांन वहुत रहमवाला है । 


ईमान की. कसौटी 


कुरआन के मुताबिक इनसान की. गुमराहीं के 
तीन सबब हैं-- एक .यह कि वह खुदा के क़ानून 
को छोड़कर अपने मन. की ख़ाहिशों का गुलाम बन - 
जाए। दूसरा यह कि खुदाई क़ानून के मुक़ाबले' में 
अपने खानदान के रस्म-रिवाज और बाप-दादा, के 
तौर-तरीक़ों को तरजीह (प्राथमिकता) दे। तीसरा यह 
कि खुदा. और उसके . रसूल. #लक्त/ ने जो तरीक़ा 
बताया है उसको छोड़कर इनसानों -की -पैरंवी करने 
लगे, चाहे वे इनसान खुद उसकी अपनी क़ौम. के 
बड़े लोग हों या रैरं-क्रौमों के लोग। ह 

मुसलमान की असली पहचान,यह.-है कि वह इन 
तीनों बीमारियों से पाक हो। मुसलमान कहते ही. 
उसको हैं जो ख़ुदा के सिवा किसी का बन्दा और - 
रसूल ,ल्क/ के सिवा किसी और -की पैरवी 
करनेवाला न हो। मुसलमान वह, है जो सच्चे,.दिल 
से इस बात पर यक्ीन रखता, हो-कि” खुदा और 
उसके रसूल (#लछ/ की तालीम सरासर हक़ (सत्य) 
है इसके ख़िलाफ़ जो कुछ है वह 'बांतिल (झूठ) है 


5 हि ५ ईमान की कसौटी 


और इनंसानं के लिए दीन और दुनिया की भलाई 
जो कुछ भी, है सिर्फ़ ख़ुदा और उसके रसूल: (बल्क,/ 
की तालीमः में है। इस बात पर' पूरा यक़़ीन. जिसे 
<शख्स- को: होगा: वह. अपनी ज़िन्दगी के हर मामले में 
सिर्फ़ यह देखेगा कि अल्लाह और उसके रसूल 
(#ल्लं) का क्‍या हुकेम है। और जब उसे हुक्म मालूम 
हो जागो तो- वह सीधी तरह से' उसके आगे सिरे 
_ झुंकां देंगा। फिर चाहे उसका दिल कितना ही 
* तिल्मिलाएं- और ख़ांनदानं के लोग, कितनी ही. बातें 
. बंनाएँ और दुनियांवाले'कितनी ही' मुख़ालिफ़त करें, 
. वह उनमें से किसी की पंरंवाह न करेगा, क्योंकि हर 
. एक, के-लिंए' उसका साफ़ जंवॉब॑ यही होगा' कि. मैं 
खुदा. का बन्दी हूँ, तुम्हारा बंन्दा नहीं हूँ और मैं 
रसूल &ल्छ/ पर ईमान लांया हूँ, तुमपर' ईमान नहीं 
लाया. हूँ। 
... इसके बरंख़िलांफ़ अंगर कोई शख्स-यह कहता है 
. कि खुदा:और रसूल कां हुक्म यह है तो हुआ करे, 
* मेरा <दिलं तो इसको नहीं मांनता; मुझे तो. इसेमें 
- नुक़सांन नज़र आता है, इसलिए मैं खुदा और रसूल 
की-बांते-को छोड़कर अपनी: राय पर चलूँगा; तों' ऐसे 
शख्स की दिल ईमान से. ख़ाली होगां। वह मोमिन 
' नहीं-बल्कि .मुनाफ़िक़ हैं-कि ज़ंबान से, तों कहता है 
कि मैं: खुदा का बन्दा और: रसूल की पैरंवीं 


ईमान की कसौटी... हि 


करनेवाला हूँ, मगर हक़ीक़ृत में अपने नफ़्स का 
बन्दा और अपनी राय का अनुयायी बना हुआ है। 


इसी तरह अगर कोई शख्स यह कहता है कि 
ख़ुदा और रसूल (#हक/ का हुक्म कुछ भी हो, .मगर 
फुलाँ बात तो बाप-दादा से होती चली आ रही है. 
उसको कैसे छोड़ा जा सकता है, या फुलाँ क़ायदा तो 
मेरे ख़ानदान या बिरादरी में मुक़र्रर है, उसे कैसे तोड़ा 
जा सकता है, तो ऐसे शख्स का शुमार भी 
मुनाफ़िक़ों में होगा, चाहे नमाज़ें पढ़ते-पढ़ते उसंकी 
पेशानी पर कितना ही बड़ा गट्टा पड़ गया हो और 
ज़ाहिर में उसने कितनी ही शरई (दीनी) सूरत बना 
रखी हो। इसलिए कि दीन की असल हक़ीकृत 
उसके दिल में उतरी ही नहीं। दीन रुकू और सजदे 
और रोज़े और हज का नाम नहीं है और न दीन 
इनसान की सूरत और उसके लिबास में होता है, 
बल्कि असूल में दीन नाम है खुदा और रसूल की 
फ़रमाबरदारी का। जो शख्स अपने मामले में ख़ुदा और 
रसूल की फ़रमाँबरदारी से इनकार करता हैं, उसका 
दिल हक़ीक़त में दीन से ख़ाली है। उसकी नमाज़ 
और उसका रोज़ा और उसकी शरई और दीनी सूरत 
एक धोखे के सिवा कुछ नहीं। 


इसी तरह अगर कोई शख्स खुदा की किताब 
और उसके रसूल की हिदायत से बेपरवाह होकर 


६ ईमान की कसौटी 


कहता है कि फुलाँ बात इसलिए अपनाई जाए कि 
वह अंग्रेज़ों में राइज है, और फ़ुलाँ बात इसलिए 
क़बूल की जाए कि फुलाँ क़ौम उसकी वजह से 
 तरक़्क़ी कर रही है, और फ़ुलाँ बात इसलिए मानी 
जाए कि फ़ुलाँ बड़ा आदमी ऐसा कहता है तो ऐसे 
शख्स को भी अपने ईमान की खैर मनानी चाहिए। 
ये बातें ईमान के साथ जमा नहीं हो सकतीं। 
मुसलमान हो और मुसलमान रहना चाहते हो तो हर 
* उस बात को उठाकर दीवार पर दे मारो जो खुदा 
और रसूल की बात के ख़िलाफ़ हो। अगर तुम ऐसा 
नहीं कर सकते तो इस्लाम का दावा तुम्हें शोभा 
नहीं देता। ज़बान से कहना कि हम खुदा और रसूल 
को मानते हैं मगर अपनी ज़िन्दगी के मामलों में हर 
वक़्त दूसरों की बात के मुक़ाबले में खुदा और रसूल 
की बात को रदृद करते रहना, न ईमान है, न 
इस्लाम; बल्कि इसका नाम मुनाफ़िक्रत (कपंट) है। 
' कुरआन पाक के अगरहवें पारे में अल्लाह ने 
साफ़-साफ़ लफ़्ज़ों में फ़रमा दिया है- 
“हमने साफ़-साफ़ हक़ीक़त बतानेवाली आयतें 
उतार दी हैं। आगे अल्लाह ही जिसको चाहता है 
डा आयतों के ज़रीए से सीधा रास्ता दिखा देता 
॥ 
ये लोग कहते हैं कि हम ईमान लाए अल्लाह 
ईमान की कसौटी 6 


- और उसके रसूल पर और हमने इताअत -क़बूल * 
की, मगर इसके बाद इनमें से एक गरोह ,. 
. इताअत से) मुँह. मोड़ .जाता है, ऐसे -लोग 

. हरगिज़ ईमानवाले नहीं हैं। जब इनको अल्लाह 
“औरं उसके रसूल की तरफ़ बुलाया जाता है; 
ताकि रसूल इनके आपस के मुक़द्दमें का. फ़ैंसला 
करे, तो इनमें से एक फ़रीक़ कतरा जांता है; - 

- अलबत्ता अगर हक़ उनके पक्ष में हो तो- रसूल 


' के पास बड़े फ़रमाँबरदार बनकर आ जाते हैं। ... '* 


* क्या इन लोगों के दिलों को (कपट का) रोग 


लगा हुआ है? या-ये शक में पड़े हुए हैं? या... ह 


इनको यह डर. है कि अल्लाह और उसका रसूल - 
: इनपर जुल्म करेगा। असूल बात यह है कि 
* ज़ालिम तो ये लोग खुद हैं? जो ईमानवाले हैं 


उनका तरीक़ा तो यह है कि जब वे अल्लाह... 


और रसूल की तरफ़ बुलाए जाएँ, ताकि रसूल 
उनके मुक़द्दमे कां फ़ैसला करे तो वे कहें कि 
* हमने सुनां और इतांअत की। ऐसे ही लोग 
'कामंयांबी पानेवाले हैं, और कामयाब वही हैं जो 
* अल्लाह और उसके रसूल की फ़रमाँबरदारी करें 
और अल्लाह से डरें और उसकी नाफ़रमानीः से -' 
- बचें! . ** (कुरआन, 24:46-52) 
इन आयतों में ईमान की जो तारीफ़ (परिभाषा) . 


बयान की गई है, उसपर ग़ौर'कीजिए। असली -. 


ईमांन यंह है कि अपने आपको खुदा की किताब 
प्र 7... इंसान की कप्तौटी ईमान की कसौटी | 


“ और उसके रसूल की-हिदायत-के सुपुर्द कर दें। जो 
हुक्म वहाँ-से मिले, उसके आगेःसिर झुका दें और 
उसके मुक़ाबले में किसी की न सुनें- न अंपने.दिलं॑ 
की, न ख़ानदानवालों की और न ही दुनियावालों 
की। यंह' कैंफ़ियत जिंसमें पैदा हो जाए वही मोमिन 
और मुस्लिम है और जो इससे ख़ाली हो उसकी 
. हैसियत मुनाफ़िक़ें (कप्रटाच्रारी) से ज़्यादा नहीं। .._ 
_ अपने सुन्ञा होगा कि अरब में शराब पीने. का 

कितंना ज़ोर था। औरत और मर्द,.ज़वान और बूढ़े 


: » सब शराब के रसिया थे। उनको असूल :में शराब से 


इश्क़ . था। इसकी तारीफ़ों के गीत गाते थे और 
इसप्रर जान देते थे। यह भी आपको मालूम होगा. 
कि शराब की लत लग जाने के बाद इसका छूटतना 
क़ितना मुश्क्रिल होता है। आदमी जान॑ देता क़बूल 
कर लेता है मगर शराब छोड़ना क़बूल नहीं कर 
* 'सक़ता। अगर ,शराबी को शराब न मिलें तो उसकी 

हालत बीमार से बदतर- हो जाती है| लेकिन कभी 
आपने सुना हैं कि जब-क्ुरआज्ञ प्राक में शराब 
हराम होने: का: हुक्म आया. तो क्‍या हुआ? वही 
अरब जो शराब पर जान देते थे, इस हुक्म के सुनते 


. _- ही उन्होंने अपने हाथ से शराब के, मटके तोड़ झाले, 


मदीना की गलियों .में शरोब इस तरह बह रही थी 
जैसे बारिश का पानी बहता है। एक मजलिस में 


ईमान की कसौड़ी न्‍ 8 


कुछ लोग बैठे शराब पी रहे थे, जिस वक़्त उन्होंने 
अल्लाह के रसूल (हलक) के मुनादी. (एलान 
करनेवाले) की आवाज़ सुनी कि शराब हराम कर दी 
गई तो जिस शख्स का हाथ जहाँ था वहीं- का वहीं 
रह गया। जिसके मुँह से प्याला लगा हुआ था उसने 
फ़ौरन उसको हटा लिया और फिर एक बूँद हलक़ 
में न जाने दी। यह है ईमान की शान! इसको कहते 
हैं ख़ुदा और रसूल की इताअत!! 

आपको मालूम है कि इस्लाम में ज़िना की सज़ा 
कितनी सख्त रखी गई है? नंगी पीठ पर सौ कोड़े। 
जिनका ख़याल करने से आदमी. के रोंगटे खड़े हो 
जाएँ। मगर आपने यह भी सुना कि जिनके दिल 
में ईमान था उनकी क्‍या कैफ़ियत्‌ थी? एक शख्स 
ज़िना कर बैठा।.कोई गवाह न था, कोई अदालत 
तक पकड़कर ले जानेवाला न था, कोई पुलिस को 
ख़बर करनेवाला न था, सिर्फ़ दिल में ईमान था 
जिसने उस आदमी से कहा कि जब तूने खुदा के 
क़ानून के ख़िलाफ़ अपने दिल की ख़ाहिश पूरी की 
है तो अब जो सज़ा खुदा ने इस जुर्म के लिए 
मुक़रर की है उसको भुगतने के लिए तैयार हो जा। 
चुनाँचे वह शख्स खुद अल्लाह के रसूल (/#लक/ की 
ख़िदमत में हाज़िर होता है और अर्ज़ करता है कि . 
ऐ अल्लाह के रसूल! मैंने ज़िना किया है, मुझे सज़ा 


9 हैं ईमान की कसौटी 


दीजिए । आप /#ल मुँह फेर लेते हैं तो फिर दूसरी 
तरफ़ आकर यही बात कहता है । आप; (सल्त्र-/ फिर 
.. मुँह फ़ेर लेते हैं तो वह फिर सामने आकर सज़ा की 
. दरख़्वास्त करता है कि जो मैंने किया है उसकी 
' सज़ा मुझे दी जाए-- यह है ईमान! जिसके दिल में 
: ईमान मौजूद है उसके लिए नंगी पीठ पर सौ कोड़े 
खाना बल्कि संगसार तक कर दिया जाना आसान 
है; मगर नाफ़रमान बनकर खुदा के सामने हाज़िर 
होना मुश्किल|। 
. आपको यह भी मालूम है कि इनसान के लिए 
दुनिया में अपने रिश्तेदारों से बढ़कर कोई प्यारा 
: नहीं होता। ख़ासकर बाप, भाई, बेटे तो इतने प्यारे 
होते हैं कि. उनपर सव कुछ कूरवान कर देना 
आदमी गवारा कर लेता है। मगर आप ज़रा बद्र 
और उहुद की लड़ाइयों पर ग़ौर कीजिए कि इनमें 
कौन किसके खझ़्िलाफ़ लड़ने गया था? बाप 
मुसलमानों की फ़ौज में है तो बेटा दुश्मनों की फ़ौज 
में, या बेटा इस तरफ़ है तो बाप॑ उस तरफ़, एक 
भाई इधर तो दूसरा भाई उधर! क़रीब से क़रीव 
रिश्तेदार एक-दूसरे के मुक़ाबिले में आए हैं और इस 
तरह लड़े हैं कि मानो ये एक-दूसरे को पहचानते ही 
नहीं। और यह जोश उनमें कुछ रुपये-पैसे या 
ज़मीन के लिए नहीं भड़का था, न कोई आपसी 


ईमान की कसौटी 0 


दुश्मनी थी, बल्कि सिर्फ़ इस वजह से वे अपने ख़ून 
: और अपने ग्रोश्त-पोस्तं के ख़िलाफ़ लड़ गए कि वे 
ख़ुदा और रसूल (हलक, पंर बाप, बेटे, भाई और सारे 
ख़ानदानं को 'कुरबान कर देने की ताकत रखते थे। 
. आपको यह .भी मालूम है कि अरब में जितने 
पुराने रस्मो-रिवाज थे, ,इस्लाम। ने क़रीब-क़रीब उन 
सभी को तोड़ डाला था। संबसे बड़ी चीज़े तो. 
.बुतपरस्ती थी जिसकां रिवाज सैंकड़ों साल से चला 
आ रहा था। इस्लाम ने -कंहा कि इन बुतों को छोड़ 
दो। शराब, ज़िना, जुआ, चोरी और डांका अरब में. 
मामूली बात थी,. इस्लाम ने 'कहा कि इनः सबको 
छोड़.दो। औरतें अरब, में. बे-परदा घूमती-फिरती थीं। 
इस्लाम ने हुक्म दियां कि परदा करो। औरतों को 
विरासत में कोई हिस्सा न दिया जाता था। इस्लाम 
ने .कहा .कि इनका भी विरासत में हिस्सा है। 
लेपालक को वही हैसियत दी जाती थी जों- सगी 
औलाद की होती ,है। इस्लाम ने कहा कि वंह “सगी 
औलाद की तंरह नहीं है, बल्कि लेपालक .अगर 
अपनी बीवी .को. छोड़ दे. तो उससे निकाह किया,जा 
सकता है। ग़रज़ कि कौन-सी पुरानी रस्म ऐसी थी 
जिसको तोड़ने का. हुक्म इस्लाम ने न दियां हो। 
. मगर आपको मालूम हैं कि जो*लोगं ख़ुदा और 
रसूल पर ईमान लाएं थे उनका क्या तरज़े-अमल 


॥। * । ईमान की कसौटी 


था?. सदियों से ज़िन बुतों को वे और -उन्नके 
बाप्र-दादा सज़्दा. करते और नज़रें चढ़ाया करते थे, 
उनको इन ईमानवालों जे अपने हाथों से .तोड़ा। 
सैंकड़ों साल से जो ख़ानदान्ी रस्में चली: आ रही थीं 
उन सबकी उन्होंने-मिटाकर रख दिया। ज़िन चीज़ों, 
'को वे पाक समझते थे, खुदां का हुक्स पाकर (कि . 
वे नांपाक हैं) उन्हें पाँवों तले रौंद डाला। जिन चीज़ों . 
को वे नाजाइज़ समझते थे, खुदा का हुक्म आते ही 
(कि वे जांइज़ हैं) 'उनंको जाइज़ समझने लगे। जो 
चीज़ें सद्रियों से पाक समझी जाती थीं वे एकदम 
नापाक॑ हो गईं और जो सदियों से नापांक॑ समझी 
जाती थीं वे ग्रंकायक पाक हो गईं। कुफ़ के जिन 
तरीकों में लज़्जत और फ़ायदे के सामान थे, ख़ुदा 
का हुक्म पाते ही उन्नको छोड़ दिया गया और . 
इस्लाम के जिन हुक्मों की पाबन्दीं इन्सान पर 
मुश्किल गुज़रती है उन सबको खुशी-खुशी क़बूल 
'कर लिया ग़या। इसका 'नाम है ईमान और इसको 
कहते हैं इस्लाम! अगर अरब के लोग उस वक़्त 
कहते कि फुलाँ ब्रात हम इसलिएं नहीं मानते कि 
हमारा 'इसमें नुक़साने है और फ़ुलाँ बात को हम 
* 'इसंलिए नहीं छोड़ते कि इसमें हमारा फ़ायंदा है, और 
फुलाँ काम को तो हम ज़रूर करेंगे क्योंकि 
बाप-दादा से यहीं होतां चला आया- है, और फुलाँ 


ईमान की कसौदी कक जल का कम रे है. जे ]9 


बातें रूमियों. की हमें पसन्द हैं और फ़ुलाँ ईरानियों 
* की हमें अच्छी. लगती हैं। गंरज़ अरब- के लोग इसी 
तरह. इस्लाम की-एकं-एक बात को रदूद कर देते तो. - 
आप. संमझ सकते हैं- कि आज दुनिया में: कोई , 
' मुसलमान न होता 
कुरआन में आंया है- शा 
: /#तुम./नेकी कोः पहुँचः नहीं सकते जब तक कि. .. - 
अपनी वे. चीज़ें (अल्लाह की राह में).ख़र्च न. - 
करो:ज़ो तुम्हें प्यारी: हैं।” .. (कुरआन; 3-5 99) 
. “बस, यही' आयतः इस्लाम और ईमान की. जांन है। 
इस्लाम की! असूलं. शान - यही. है कि जो+चीज़े: 
आपको, प्यारी हैं, उन्तकों खुदा की खुशी पर क़ुरबान' - 
-करंः दें। .ज़िन्दगी. के .सोरे मामलों में आप देखते हैं 
कि खुदां' का; हुक्म: एक. तरफ़ बुलाताः है और नफ़्सं-' 
: की ख़ाहिशें दूसरी .तरफ़ बुलाती हहैं। खुदा एक काम: 
का; हुक्म  देंता है, नंफ़्सः कहता- है कि..इसमें' तो 
तक़लीफ़ है या. नुक़सान। ख़ुदा एक वात से. रोकतां 
है, नफ़्स कहता है.कि यह, तो बड़ी मज़ेद्रार:चीज़ हैं,. 
यह, तो बड़ेःफ़ायदे- की चीज़ है.। एक तरफ़ खुदा की 
खुशनूदी होती: हैं और दूसरी, तरफ़ एक दुनिया की'ः 
दुनिया खड़ी होती है ग़रज़ ज़िन्दगी में हर-हर क़दम 
परे; इनसान को: दो रास्ते: मिलते: हैं।. एक रास्ता 
इस्लांम का है: और दूसरा कुफ़ और निफ़ाक़ का।- 


8 * ह क है! - ईमान की कसौटी 


जिसने दुनिया, की हंर चीज़ को.ठुंकराकर खुदा के _ 
हुक्म के. आगे सिर झुका. दिया: उंसने इस्लाम का 
रास्ता अपनां लिया, और जिसने खुंदा के हुक्म को 
* छोड़कर अपने दिल की या दुनिया की ख़ुशी पूरी 
* की, उसने कुफ़ या निफ़ाक़ का रास्ता अपना लिया। 


आज लोगों का हाल यह है कि इस्लाम की जो 
बात आस्नान है उसे तो बड़ी खुशी के' साथ क़बूल 
करते हैं, मगर जहाँ कुफ़ और इस्लाम -का असली 
मुक़ाबला होता है वहीं से रुख़ बदल देते हैं, इस्लाम 
के बड़े-बड़े दावेदांरों में भी यह कमज़ोरी मौजूद है। 
वे इस्लांम-इस्लाम बहुत पुकारेंगे, उसकी तारीफ़ 
* करते-करते उनकी ज़बान खुश्क हों जाएगी, उसके 
लिए ' कुछ दिख़ावे के काम भी कर देंगे। मगर उनसे 
कहिए कि यह इस्लाम, जिसंकी आप॑ इतनी तारीफ़ 
कर रहे हैं, आइएं ज़रा इसके क़ानून को हमे-आप 
ख़ुद अपने ऊपर लागू करें तो वे 'फ़ौरन कहेंगे कि 
इसमें फ़ुलाँ मुश्किल है और फ़ुलाँ दिव़क़तं है और 
अभी तो इसको बस रहने ही दीजिएं। मतलेंब यह- 
है कि इस्लाम एक खूबसूरत खिलौना है, इंसंको बस . 
ताक़ पर रखिए और दूर से बैठकर इसकी तारीफ़ें 
किए जाइए, मगर इसे ख़ुद अंपनी ज़ात पंर और 
अंपने घरवालों और रिश्तेदारों पर औरं अपने 
कारोबार और मामलों प्रर एक क़ानून की. हैसियत 


ईमान की' कसौटी ः ]4 


से लागू करने का नाम तक न लीजिए। यह हमारे 
आजकल के दीनदारों का हाल है। अब दुनियादारों 
का तो ज़िक्र ही बेकार है। इसी का नतीजा है कि 
न अब नमाज़ों में वह असर है जो कभी था, न 
रोज़ों में है, न कुरआन पढ़ने में और न शरीअंत की , 
ज़ाहिरी पाबंदियों में। इसलिए कि. जब रूह ही : 
मौजूद नहीं तो निरा बेजान्‌ जिस्म क्या करामत 
दिखाएगा? 
१0202 


प5 ; . ईमान की कसौटी 


लेखक की कुछ अन्य ः पुस्तकें. 


० नमाज़ में क्या पढ़ते हैं? 
० “ईमान की कसौटी 
» इबादते “४ 
० इस्लांम का-असूल मेयारं 
* . खुदा की इबांदत किसंलिंएं? 
-» परदा 
० दीनियात 
०. सोचने की-बांतें 
०. शान्तिमार्ग 
० बंनावं-बिगाड़ृ 
* » मुसलंमान किसे कहंते हैं? 
: ७. संत्य धर्म 2 
० नमाज़ें बे-असर क्यों हो गईं? 
»' इस्लाम. की जींवन- व्यवस्था , 


ईमान की कसौटी .- '